विशेष

कविता
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समय की मार
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ग़रीबी आने के लिये तैयार बैठी है
तुम्हें बस उसके स्वागत के लिये ?

वह सारे काम करने है जिनसे ग़रीबी ?
आराम से तुम्हारे साथ रह सके !

गणेश 
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